मंगलवार, 19 सितंबर 2017

साहित्य से कटने के खतरे कम नहीं

 ‘हमसफ़र’, ‘मां’ और ‘काव्य व्याकरण’ का विमोचन 

इलाहाबाद। साहित्य से कट जाने का मतलब समाज के कई सरोकारों से कट जाना है। इसके खतरे भी बहुत हैं। इसलिए ये जरूरी है कि साहित्य की लौ को न सिर्फ जलाए रखा जाए बल्कि इसे महफूज भी रखा जाना चाहिए। 03 सितंबर को हिंदुस्तान एकेडमी में साहित्यिक संस्था ‘गुफ्तगू’ ने तीन पुस्तकों के विमोचन और मुशायरे का आयोजन किया। इस दौरान साहित्य की विभिन्न विधाओं पर विस्तार से चर्चा की गई। कहा गया कि साहित्य की परंपरा को आगे बढ़ाना है। अंजली मालवीय ‘मौसम’ की गजल और नज्मों का संग्रह ‘हमसफ़र’, सीपी सिंह का काव्य संग्रह ‘मां’ और इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी की संपादित पुस्तक ‘काव्य व्याकरण’ के विमोचन के बाद वक्ताओं ने साहित्य की रचनाधर्मिता के विभिन्न विधाओं पर चर्चा की। मुख्य वक्ता बुद्धिसेन शर्मा ने बदलते वक्त में साहित्य की दशा को रेखांकित किया। आगाह किया कि साहित्य को रचना और उस पर व्यापक तरीके से चर्चा करना बेहद जरूरी है। वैचारिक मंथन ही साहित्य को नयी रोशनी देगा। अध्यक्षता कर रहे समाचोलक नीलकांत ने साहित्य पर मंडराते खतरों की तरफ लोगों को आगाह किया। कहा कि मौजूदा हालात में साहित्य के सामने संकट कम नहीं हैं। रविनंदन सिंह ने साहित्य के वजूद की चर्चा की। कहा कि इतिहास गवाह है कि साहित्य की ताकत काफी मजबूत होती है। शैलेंद्र कपिल ने कहा कि ख़ासतौर पर नए लोगों के लिए ‘काव्य व्याकरण’ बहुत अच्छी किताब है। अंजली मालवीय और सीपी की किताबों में शामिल कविताएं बेहद उल्लेखनीय हैं। धनंजय चोपड़ा ने कहा कि कवयित्री अंजली मालवीय जहां रिश्तों के सरोकार को उल्लेखित करती हैं, वहीं सीपी सिंह अपनी कविताओं से समाज के बदलते रिश्ते को रेखांकित करते हैं। ‘काव्य व्याकरण’ का संपादन करके इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने काव्य सृजन सीखने वालों के लिए तोहफा पेश किया है। नंदल हितैषी और शैलेंद्र कपिल ने साहित्य में आए बदलाव पर चर्चा की। इस अवसर पर भारत भूषण मालवीय, शिवाशंकर पांडेय ने भी विचार रखे। संचालन इम्तियाज अहमद गाजी ने किया।  
दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। बुद्धिसेन शर्मा, भोलानाथ कुशवाहा, डाॅ. श्वेता श्रीवास्तव, डाॅ. विनय श्रीवास्तव, शिवाजी यादव, मनमोहन सिंह ‘तन्हा, धर्मेंद श्रीवास्तव, नरेश महरानी, संजय सागर, सागर होशियारपुरी, फरमूद इलाहाबादी, प्रभाशंकर शर्मा, अनिल मानव, माहिर मजाल, शैलेंद्र जय, रामायण प्रसाद पाठक, जमादार धीरज, डाॅ. राम आशीष यादव,  इरफ़ान कुरैशी, इम्तियाज़ अहमद गुमनाम, लोकेश शुक्ला, पीयूष मिश्र पीयूष, अवनीश यादव, अजीत शर्मा आकाश, अमित वागर्थ, नायाब बलियावी, महक जौनपुरी, महेंद्र कुमार, अशोक कुमार स्नेही, अरुण सरकारी, शालिनी साहू, डाॅ. नईम साहिल, अर्पणा सिंह आदि ने काव्य पाठ किया। 
                                                    


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