गुरुवार, 28 मई 2015

भोगा हुआ सच है डाॅ. विक्रम की कविताएं- प्रो. फ़ारूक़ी

                                                        
              गुफ्तगू के डाॅ. विक्रम अंक का विमोचन और मुशायरा 

इलाहाबाद। डाॅ. विक्रम की कविताएं बेहद सराहनीय और समाज की कुरूतियों पर प्रहार करती हुई हैं, जिन पर लोग अक्सर बात करने से बचते हैं। जीवन का भोगा हुआ सच डाॅ. विक्रम ने अपनी कविताओं में बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है। यह बात इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एनआर फ़ारूक़ी ने ‘गुफ्तगू’ के डाॅ. विक्रम अंक के विमोचन अवसर पर कही। कार्यक्रम का आयोजन 17 मई की शाम सिविल लाइंस स्थित बाल भारती स्कूल में साहित्यिक संस्था ‘गुफ्तगू’ के तत्वावधान में किया गया। प्रो. फ़ारूक़ी कार्यक्रम मुख्य अतिथि थे, अध्यक्षता पं. बुद्धिसेन शर्मा और संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया।
वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र ने कहाकि ‘गुफ्तगू’ की शुरूआत बहुत ही मुश्किल दौर में इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने की थी। आज यह एक सफल पत्रिका के रूप में जाने-पहचानी जाती है। डाॅ. दीनानाथ ने कहा कि डाॅ. विक्रम ने अपनी कविताओं में दलित साहित्य की मूल चीजें को खोजने का काम साहस के साथ किया है। यह बड़े हिम्मत की बात है। रविनंदन सिंह ने कहा कि डाॅ. विक्रम की रचनाएं दलित चेतना को जागृत करती हैं, हालांकि अब समाजिक स्थितियों में काफी बदलाव आ रहा है। पं. बुद्धिसेन शर्मा ने कहा कि आज के दौर में गुफ्तगू जैसी पत्रिका का सफल प्रकाशन कोई आसान काम नहीं है, इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने अपनी मेहनत और सूझबूझ से इसे कायम रखा है, इलाहाबाद से ऐसी पत्रिका का प्रकाशन गौरव की बात है। शिवाजी चंद्र कौशिक, जमादार धीरज और शैलेंद्र कपिल और ने भी विचार व्यक्त किया। दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया, जिसका संचालन शैलेंद्र जय ने किया। सागर होशियारपुरी, शिवपूजन सिंह, नरेश कुमार महरानी, स्नेहा पांडेय, अजीत शर्मा आकाश, प्रभाशंकर शर्मा, वाकि़फ़ अंसारी, संजू शब्दिता, अमित वागर्थ, नईम साहिल, रोहित त्रिपाठी रागेश्वर, मनीष सिंह, कविता उपाध्याय, मनमोहन सिंह तन्हा, शादमा जैदी शाद, शाहीन खुश्बू, रमेश नाचीज आदि ने कलाम पेश किया।
                                                                                            

पं. बुद्धिसेन शर्मा
प्रो. एनआर फ़ारूक़ी 
मुनेश्वर मिश्र
 शैलेंद्र कपिल 
 इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
शिवपूजन सिंह
वाकि़फ़ अंसारी
संजू शब्दिता
रोहित त्रिपाठी रागेश्वर
मनीष सिंह
कविता उपाध्याय

शादमा जैदी शाद
शाहीन खुश्बू
रमेश नाचीज

शनिवार, 2 मई 2015

प्रो. ओम प्रकाश मालवीय

प्रो. ओम प्रकाश मालवीय
 

                                                                                -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
अपने काम और सक्रियता के दम पर प्रो. ओपी मालवीय ने इतना काम अब तक समाज के लिए किया है कि वे किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है। सक्रिय सामाजिक कार्य से जुड़े रहने के कारण इलाहाबाद में लगभग हर आदमी उनको अच्छी तरह से जानता है। 81 वर्ष की उम्र पार करने बाद भी आज देश और समाज की बेहतरी के लिए काम करने में सक्रिय हैं। इससे पहले भी जब-जब इलाहाबाद में सामाजिक माहौल खराब करने का प्रयास किया गया तब-तब मालवीय जी ने आगे आकर ऐसे प्रयासों को विफल करने में सक्रिय भूमिका निभाई है। 19 सितंबर 1933 को इलाहाबाद के ही कोटवा जमुनीपुर मंे जन्मे श्री मालवीय के पिता का नाम पं. शंभुनाथ मालवीय और माता का नाम रमा देवी मालवीय है। रमादेवी म्यूनीसिपल अपर मीडिल स्कूल में प्रधानाचार्या थीं, उन्होंने समाज की बेहतरी के लिए बहुत कार्य किया है, प्रो. मालवीय पर उनकी कार्य शैली का बहुत अधिक असर पड़ा, यही वजह है कि वे शुरू से ही सामाजिक कार्यों में जुड़े रहे। केसरवानी वैश्य विद्यालय से 1949 में हाईस्कूल और गर्वमेंट इंटमीडिएट कालेज से 1951 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इंटरमीडिएट की परीक्षा में पूरे प्रदेश की मेरिट में आप तीसरे स्थान पर रहे। अंग्रेजी, संस्कृत और प्राचीन इतिहास विषय के साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और अंग्रेजी विषय से इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही स्नाकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। एमए की पढ़ाई के दौरान ही ‘विश्व सभ्यता का इतिहास’ और ‘प्राचानी काल में अरब सभ्यता’ नामक पुस्तकंें लिखीं, जिसे काफी समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता रहा है। 
1955 में एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद इसी वर्ष सीएमपी डिग्री कालेज में अध्यापन कार्य से जुड़ गए। 1957 में पीसीएस में चयन होने के बाद आजमगढ़ में डिप्टी कलेक्टर के रूप में नियुक्ति मिली। इनका मन प्रशासनिक कार्यों के बजाए अध्यापन में अधिक लगता था, उनकी इच्छा थी कि देश समाज के निर्माण के लिए बच्चों को पढ़ाना अधिक बेहतर कार्य है। यही वजह है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य के लिए वैकेंसी निकली तो इन्हांेंन आवदेन किया। साक्षात्कार के दौरान इंटरव्यू लेने वालों ने हैरानी से पूछा कि जब आप डिप्टी कलेक्टर के रूप में नियुक्ति पा चुके हैं, तो फिर यहां क्यों आना चाहते हैं? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि बच्चों को शिक्षा देने का कार्य ज्यादा बेहतर समझता हूं। उनके जवाब से इंटरव्यू लेने वाले काफी प्रभावित हुए और इनकी नियुक्ति अंग्रेजी अध्यापक के रूप में हो गई। इन्होंने डिप्टी कलेक्टरी की नौकरी छोड़ दी। यहीं से अध्यापन करते हुए 1991 में सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने उस्ताद दिलशाद हुसैन से संगीत की भी शिक्षा ली है, क्लासिकल संगीत में आपकी खास रुचि रही है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के गीतों, फि़राक़ गोरखपुरी के नज़्मों और कालीदास के श्लोक को इन्होंने संगीबद्ध किया है। समय-समय पर होने वाले आयोजन में इन गीतों को अपनी सुरीली आवाज़ में प्रस्तुत करते हैं। अक्सर कार्यक्रमों में इनसे फि़राक़ गोरखपुरी की नज़्म सुनने की फरमाइश की जाती है। अब तक आपने आधा दर्जन से अधिक किताबें लिख चुके हैं, अत्यधिक उम्र होने के बावजूद अपने घर पर ही बच्चों को अंग्रेजी की निःशुल्क शिक्षा देते हैं। विश्वविद्यालय और डिग्री कालेजों के छात्र-छात्राएं इनसे आज भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए इनके घर आते हैं। अटाला कब्रिस्तान के अंदर इनके द्वारा किया गया पौधरोपड़ का कार्य लोगों में ख़ासा चर्चा का विषय रहा है, बहुत से लोग इनकेा पौधरोपड़ कराने वाले बाबूजी के नाम से भी पुकारते हैं। इस कार्य में इतनी तन्मयता से लगे रहे कि लोगों ने आरोप लगाया कि पैसा लेकर यह कार्य कर रहे हैं, बाकायदा जांच-पड़ताल करवाई गई। जब हक़ीक़त का पता चला तो आरोप लगाने वाले लोग ही इनका गुणगान करने लगे। 1992 में बाबरी मजिस्द के शहीद होने के बाद पूरा देश दंगों की चपेट में आ गया था। उस दौरान इलाहाबाद में भी कई जगह दंगे हुए, तमाम जगहों पर जानबूझ कर दंगे कराने की कोशिश की गई, तब प्रो. मालवीय ने पूरे शहर में घूम-घूम कर लोगों को शांति और एकता का संदेश दिया, लोगों को दंगों से दूर रहने की सीख दी, इनके साथ इनका पूरा परिवार सुबह से ही निकलता और शाम तक लोगों को शांति और भाईचारे का संदेश देता रहता। तब इनके कार्य को आम जनता के अलावा प्रशासनिक तौर पर भी काफी सराहना मिली। इनकी कोशिश की वजह से ही सैकड़ों परिवार दंगों की चपेट में आने से बचे। पिछले लोकसभा चुनाव में वामपथी दलों के बुरी तरह फेल होने जाने पर इनका कहना है कि अब मध्यम वर्ग के पास अपेक्षाकृत अधिक धन आ गया है, जिसके कारणा लोगों में संघर्ष की प्रवृत्ति खत्म सी हो गई है, उपर से खासतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जातिगत आधार पर राजनीति होने लगी है, जिसके कारण वामपंथी आंदोलन एक तरह प्रभावी नहीं दिख रहा है, इसके लिए नये सिरे से प्रयास करने की ज़रूरत है। प्रगतिशील लेखक संघ की बागडोर भी अब सही लोगों के हाथ में नही ंहै।
प्रो. मालवीय ने पांच पुत्र हैं। अमिताभ मालवीय भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। आनंद मालवीय सांख्यिकी विभाग में नौकरी करते हैं, प्रियदर्शन मालवीय लखनउ में आरटीओ हैं। शुभदर्शन मालवीय और परिमल मालवीय इलाहाबाद हाईकोर्ट में सेक्शन आफिसर हैं। वर्तमान समय में आप मालवीय नगर मुहल्ले में रहते हैं।
(‘गुफ्तगू’ के मार्च-2015 अंक में प्रकाशित)